© महावीर सांगलीकर
सम्राट अशोक यह मौर्य राजवंश का तिसरा सम्राट था. वह मौर्य राजवंश के संस्थापक सम्राट चन्द्रगुप्त का पोता, और सम्राट बिंदुसार का पुत्र था.
सम्राट अशोक ने अपने पडोसी राज्य कलिंग पर आक्रमण किया था. इस युद्ध में दोनों तरफ के लाखों सैनिक मारे गये. इस कारण अशोक के मन में हिंसा के प्रति नफरत तैयार हो गयी और उसने बौद्ध धर्म का अंगीकार किया, ऐसा माना जाता है.
यहां गौर करने लायक एक विशेष बात यह कि बौद्ध धर्म का अंगीकार करने से पहले सम्राट अशोक किस धर्म का अनुयायी था इस बात की चर्चा कोई नहीं करता. कई लोग सोच सकते हैं कि सम्राट अशोक ने हिन्दू धर्म को त्याग कर बौद्ध धर्म को अपनाया. लेकिन उस समय (और आगे भी हजारों साल) हिन्दू नाम का कोई धर्म अस्तित्व में ही नहीं था. मगध साम्राज्य में उस समय जैन, बौद्ध, आजीवक, ब्राह्मण (वैदिक) आदि धर्म थे. बौद्ध धर्म अपनाने से पहले सम्राट अशोक का वैदिक ब्राह्मण होने का कोई सवाल ही नहीं उठता. ऐसी अवस्था में हम कह सकते हैं कि पहले सम्राट अशोक या तो जैन था, या फिर आजीवक.
लेकिन क्या सम्राट अशोक सचमुच अस्तित्व में था? अगर था, तो क्या उसने बौद्ध धर्म को सचमुच अपनाया था? सच कुछ और है.
सम्राट अशोक नाम का कोई राजा वास्तव में अस्तित्व में था, कलिंग के युद्ध में हिंसा के कारण सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया यह कहानी केवल बौद्ध धर्म के कुछ ग्रंथों में उपलब्ध है. इस कहानी का समर्थन करने वाला दूसरा कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है. जिन्हें अशोक के शिलालेख कहा जाता है, ऐसे किसी भी शिलालेख में अशोक नाम का दिखाई नहीं देता है. इन शिलालेखों के अनुसार जिसने वह लिखे उसका नाम ‘देवानाम पियं पियदस्सी’ था. बौद्ध ग्रन्थ पियदस्सी को ही सम्राट अशोक मानते हैं, लेकिन इस मानाने के पीछे कोई तर्क या प्रमाण नहीं है. वास्तव में पियदस्सी के किसी भी शिलालेख के अनुसार सिद्ध नहीं किया जा सकता की उसने बौद्ध धर्म को अपनाया था.
जिन्हें सम्राट अशोक के शिलालेख कहा जाता है, वह सारे के सारे सम्राट अशोक ने ही लिखवाये थे इस बात के लिए आधुनिक इतिहासकार मानने के लिए तैयार नहीं है, क्यों कि इन विभिन्न शिलालेखों के कालक्रम में बडा अन्तर है.
समकालीन बौद्ध, जैन और वैदिक ग्रंथों में और विदेशी यात्रियों के यात्रावृत्तों में अशोक का कोई उल्लेख नहीं है. सम्राट अशोक की कथा सबसे पहले 'अशोकवदन' इस बौद्ध ग्रन्थ में पायी जाती है, जो इसा की दूसरी सदी में लिखा गया था, यानि कथित सम्राट अशोक के पांच शताब्दियों बाद! का . उसके बाद चौथी सदी के महावंश और पांचवी सदी के दीपवंश इन बुद्ध ग्रंथों में सम्राट अशोक की कथा पायी जाती है. यह सारे ग्रन्थ समकालीन न होने के कारण और इनमें दी गयी जानकारी के कोई बाहरी प्रमाण न होने के कारण हम सम्राट अशोक की कहानी को प्रामणिक नहीं मान सकते.
प्राचीन जैन ग्रंथों में मौर्य राजवंश के चन्द्रगुप्त, बिन्दुसार, कुणाल, सम्प्रति का और मगध के कई अन्य प्रमुख लोगों का विस्तार से वर्णन है, लेकिन अशोक का वर्णन नहीं है ऐसा क्यों?
गौर करने लायक एक महत्वपूर्ण बात यह है कि समकालीन ग्रीक इतिहास में सम्राट चन्द्रगुप्त के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है, लेकिन ग्रीक स्रोत देखील सम्राट अशोकाचा कोई उल्लेख नहीं करते.
यह सारी बातें सम्राट अशोक के अस्तित्व पर ही सवाल खडा कर देते हैं.
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