गुरुवार, 28 जुलाई 2022

क्या भगवान महावीर ब्राह्मण विरोधी थे? क्या जैन धर्म ब्राह्मण विरोधी है?

महावीर सांगलीकर 

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कुछ बहुजनवादी विद्वान और सामाजिक कार्यकर्ता कहते रहते हैं कि भगवान महावीर ब्राह्मणों के विरोधी थे. उन्होंने वैदिक धर्म के विरोध में जैन धर्म की स्थापना की. इन विद्वानों और कार्यकर्ताओं द्वारा अक्सर कहा जाता है कि द्वारा कहा जाता है कि वैदिक ब्राह्मण यज्ञो में पशुबली देते थे, वैदिक धर्म के कारण समाज में उच-नीचता पनप रही थी, ब्राह्मणवाद समाज पर हावी हो गया था, इसीलिये भगवान महावीर ने जैन धर्म की स्थापना की और उसके माध्यम से ब्राह्मणों का विरोध किया.

लेकिन सच्चाई क्या है?

पहली बात तो यह है कि भगवान महावीर ने जैन धर्म की स्थापना नहीं कि थी. जैन धर्म, उसके मुलभूत विचार भगवान महावीर के पहले से ही चले आ रहे थे. भगवान महावीर जैन धर्म के 24 वे तीर्थंकर थे और उनके समय 23 वे तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की परंपरा के अनुयायी बडी संख्या में मौजूद थे. प्राचीन जैन और बौद्ध साहित्य में इसके अनेक उल्लेख दिखाई देते हैं. वेदों में भी जैन परंपरा का उल्लेख मिलता है. उससे पूर्व, सिन्धु घाटी की सभ्यता में जैन परंपरा अस्तित्व दिखाई देता है. इस कारण भगवान महावीर ने जैन धर्म की स्थापना की ऐसा कहना गलत साबित होता है.

यह सच है कि भगवान महावीर पशुबली के विरोधी थे, कर्मकांड के विरोधी थे और इन बातों समर्थन करने वाले वेदों को वह नहीं मानते थे. लेकिन इसका मतलब यह नहीं होता कि भगवान महावीर ब्राम्हणों के विरोधी थे. उस समय समाज में दो प्रकार के ब्राम्हण थे. कर्मकांडी ब्राम्हण, जो कर्मकांड में ही विश्वास रखते थे, और ज्ञानकांडी ब्राम्हण, जो ज्ञान और चिंतन को महत्व देते थे. ज्ञानकांडी ब्राम्हण खुद आगे आ कर भगवान महावीर से जुड गए. उन्होंने भगवान महावीर के विचारों को समाज में फैलाया. दूसरी ओर कर्मकांडी ब्राम्हणों का प्रबोधन कर उन्हें सही रास्ते पर लाया.

भगवान महावीर के 11 प्रमुख शिष्य थे, जिन्हें गणधर कहा जाता है. यह सभी गणधर ब्राह्मण थे. इसलिए भगवान महावीर को ब्राह्मणों का विरोधी बताना एक गलत बात है.

आगे का इतिहास देखते है तो पता चलता है कि कई महान जैन आचार्य जन्म से वैदिक ब्राम्हण थे, जिन्होंने पूरे भारत में या अपने-अपने प्रदेशों मेंजैन धर्म को फैलाया. उनकी एक लम्बी लिस्ट है, जिसे यहां देना संभव नहीं है.

ना भगवान महावीर ब्राह्मण विरोधी थे, और ना ही जैन धर्म ब्राह्मण विरोधी है. जैन धर्म में सभी जाती और वर्ण के लोगों को स्थान है. यह बात अलग है कि जैन धर्म में ब्राह्मण व्यक्ति को ब्राह्मण होने के कारण कोई विशेष स्थान नहीं दिया गया है. और यह केवल सैद्धांतिक स्तर पर नहीं है, बल्कि प्रत्यक्ष में भी दिखाई देता है. चूं कि यहां ब्राम्हणों की बात चल रही है, मैं एक और बात बताना चाहूंगा. आज भी दक्षिण भारत की कुछ ब्राह्मण जातियां, गुजरात-राजस्थान-मध्य प्रदेश कुछ ब्राह्मण जातियां परंपरा से जैन धर्म का पालन करती हैं. कुछ ऐसी भी ब्राह्मण जातियां हैं, जो जैन और वैदिक इन दोनों धर्मों का पालन करती हैं. और उससे भी बड़ी बात यह है कि आज के कई जैन मुनि ब्राह्मण समाज से आये हुए हैं.

मैं बहुजनवादी विद्वांनो से अपील करता हूं कि उनको ब्राह्मण विरोध के लिए भगवान महावीर और जैन धर्म का उपयोग करना बंद कर देना चाहिए. उनको चाहिए कि जैन दर्शन को ठीक से जान लें, पता चलेगा कि वहां किसी भी जाती या समाज का विरोध नहीं किया गया है.

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