गुरुवार, 9 सितंबर 2021

जैन समाज क्या है? जैन समाज का सही स्वरुप जानिये!

© महावीर सांगलीकर 

आम तौर पर समझा जाता है कि जैन यानि बनिया, जैन यानि मारवाडी या गुजराती. लेकिन यह एक बहुत बडी गलतफहमी है. वास्तव में जैन का मतलब होता है वह व्यक्ति, जो जैन धर्म का पालन करता है. जिस समाज में जैन धर्म का पालन करने वालों की संख्या बहुत ही ज्यादा है, उसे जैन समाज कहा जाता है. वास्तवता यह है कि जैन धर्म का पालन करनेवालों में केवल बनिया या व्यापारी लोग नहीं हैं, बल्कि भारत के लगभग हर प्रदेश में, हर भाषा-भाषी लोगों में जैन धर्म का पालन करने वाले समाज पाए जाते हैं.

अन्थ्रोपोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के दि पीपल ऑफ़ इंडिया इस पुस्तक सीरीज के अनुसार भारत में कम से कम 110 ऐसे समूह हैं, जो जैन धर्म का परंपरा से पालन करते हैं.

इस लेख में मैं उन जैन समाजों की जानकारी दे रहां हूं जिनके बारे में ज्यादातर लोग जानते नहीं.

दक्षिण भारत का जैन समाज
दक्षिण भारत में कुछ मराठी, कन्नड, तुलु और तमिल भाषी समाज हैं, जो परंपरा से जैन धर्म का पालन करते हैं. केरल में भी कुछ मलयालम भाषी समाज हैं, जो जैन धर्मी है, हालांकि उनकी संख्या एकदम कम है. दक्षिण के जैनियों का गौरवशाली इतिहास है और यह इतिहास कम से कम 2300 वर्ष प्राचीन है.

दक्षिण महाराष्ट्र और उत्तर कर्नाटक में स्थानीय जैन धर्मानुयायीयों की संख्या काफी बड़ी है. यह लोग ज्यादातर किसान परिवारों से है. उनके अलावा कुछ लोग कारीगर जातियों से हैं और कुछ स्थानीय व्यापारी भी है (जिन्हें बनिया नाम से नहीं जाना जाता). आजकल इन सब में शिक्षा का काफी प्रचार हो चूका है और यह लोग जीवन के अलग अलग क्षेत्रों में कार्यरत हैं. इनमें बहुत सारे लोग शिक्षक, इंजीनियर, डॉक्टर आदि हैं.

तटीय कर्नाटक का जैन समाज प्रभावशाली है. यह लोग ज्यादातर ‘बंट’ जाती के हैं. इनके कॉफी, नारियल आदि के बड़े बड़े बागान होते हैं. पोर्तुगीजों को कई बार हराने वाली रानी अबक्का इसी जैन बंट समाज से थी.

दक्षिण कर्नाटक के गौड़ा समाज के कई लोग जैन धर्म का पालन करते हैं. वास्तव में प्राचीन युग और और मघ्यकाल में ज्यादातर गौडा जैन धर्मानुयायी थे. लेकिन बाद में कई कारणों से उन्होंने वैष्णव या शैव धर्म अपनाया. आजकल गौड़ा समाज के कई लोग फिर से जैन धर्म अपना रहें हैं. गौड़ा समाज कर्नाटक का एक प्रमुख प्रभावशाली समाज है.

दक्षिण कर्नाटक में ‘जैन ब्राम्हण’ नाम की जाती है. यह लोग जैन धर्मावलंबी हैं. मैसूरु शहर में इनका एक जैन छात्रावास भी है.

महाराष्ट्र से लेकर तमिल नाडु तक कई जैन तीर्थ क्षेत्र हैं. और हर तीर्थक्षेत्र के आसपास स्थानीय जैन समाज होता है.

बुंदेलखंड का जैन समाज
उत्तर भारत के बुंदेल खंड में लाखों की संख्या में स्थानीय जैन धर्मानुयायी हैं. यहां के जैन समाज से बड़े-बड़े जैन विद्वान, जैन मुनि, लेखक, प्रशासनिक अधिकारी आदि हो गए हैं. ओशो रजनीश भी इसी समाज से थे. इस विभाग में जैन धर्म के तारणपंथ के अनुयायी बड़ी संख्या में हैं, जो समाज के विभिन्न वर्गों से आते हैं.

यह का समाज धार्मिक दृष्टी से जागृत है.

पूर्व भारत का जैन समाज 
पूर्व भारत के झारखण्ड, बंगाल, उडीसा आदि राज्यों में सराक नाम का एक समाज है. सराक यह शब्द श्रावक शब्द का अपभ्रंश है. इनकी संख्या काफी बडी है. यह लोग जैन ही है लेकिन जैन समाज के मुख्य प्रवाह से टूट गये थे. अब धीर धीरे यह लोग मुख्य प्रवाह में शामिल हो रहें हैं.

इन प्रदेशों में सराकों के अलावा रंगिया नाम का एक समाज है जो प्राचीन काल से जैन था, मुख्य धरा से टूट गया था और अब वापस जैन धर्म अपना रहा है.

आदिवासी जैन 
गुजरात में लाखों की संख्या में आदिवासी लोग है जो जैन धर्म का पालन करते हैं. अन्य प्रदेशों में भी आदिवासीयों के कुछ समूह जैन धर्म का पालन करते हैं. राजस्थान में मीणा इस आदिवासी जाति में जैन धर्म का पालन करने वाले लोग बड़ी संख्या में हैं.

प्रसिद्ध जैन आचार्य विजय इंद्र दिन्न सूरी जी गुजरात के आदिवासी समाज में जन्मे थे. उन्होंने लाखों आदिवासियों शाकाहारी और निर्व्यसनी बनाया और उनपर जैन धर्म के संस्कार किये.

मातंग समाज में जैन धर्म
महाराष्ट्र, कर्णाटक, तेलंगण, गुजरात आदि प्रदेशों में मातंग नाम का समाज है. तेलंगण में इन्हें मादिगा नाम से जाना जाता है. मातंग एक प्राचीन समाज है, जिसका उल्लेख प्राचीन जैन ग्रंथों में कई स्थानों पर पाया जाता है. इस समाज की उत्पत्ति भगवान ऋषभदेव के पोते विनमि के पूत्र मातंग से हुई थी. पिछले कुछ सालों से इस समाज के कई परिवार जैन धर्म अपना चुके हैं. इस समाज के बारे में जादा जानकारी पाने के लिये मातंग वंश का इतिहास और जैन धर्म यह लेख पढिये.

ओबीसी जैन
देशभर में कई ऐसे जैन समूह है जो जिन्हें ओबीसी का दर्जा दिया गया है, क्यों कि यह लोग सामजिक और शैक्षणिक रूप से पिछडे हुए थे. दूसरी तरफ राजस्थान, गुजरात आदि प्रदेशों में लगभग सभी ओबीसी जातियों में कुछ लोग जैन धर्म का पालन करते हैं. ऐसी जातियों से दीक्षाएं भी हो चुकी हैं. घांची ऐसी ही एक प्रसिद्ध जाति है जो गुजरात, राजस्थान आदि प्रदेशों में और महाराष्ट्र के मुंबई आदि शहरों में बसती है. जैन मुनि श्री भद्रानंदविजयजी महाराज इसी समाज से हैं जो इस समाज में जागृति ला रहें हैं.

महाराष्ट्र के लगभग 15 जैन जातियों को ओबीसी का दर्जा दिया गया है, जिनमें सैतवाल, कासार, पंचम, कोष्टी आदि जातियां प्रमुख हैं.

इनके अलावा उत्तर भारत में राजपूत, जाट और खत्री समाज के कई लोग जैन धर्म का पालन करते हैं, और इन समाजों से कई जैन मुनि, साध्वियां और आचार्य तक हुए हैं.

गुजरात-राजस्थान का जैन समाज 
गुजरात-राजस्थान  में ओसवाल, पोरवाल, श्रीमाल आदि व्यापारी समाज के अलावा कई ऐसे समूह है जो जैन धर्म का पालन करते है. इसमें पटेल, मीणा, क्षत्रिय परमार, वीरवाल, धर्मपाल आदि समूह प्रमुख है. गुजरात के दादा भगवान संप्रदाय ने जैन दर्शन को लाखों अजैन लोगों तक पहुंचाया हैं.  

अब तक मैंने जैन धर्म पालन करने वाले अलग अलग समूहों के बारे में जानकारी दी. इनके अलावा भारत भर में कई ऐसे समाज है जो मध्य काल में जैन थे लेकिन अब जैन नहीं हैं. लेकिन उनमें जैन धर्म के कुछ संस्कार और रीतिरिवाज आज भी दिखाई देते हैं. उनके बारे में मैं एक अलग लेख लिखूंगा.

जैन धर्म का पालन करने वाले विभिन्न समूहों की सूचि जैन जातियां | जैन धर्म का पालन करने वाले कुछ समूह इस लिंक पर पढिये

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8 टिप्‍पणियां:

  1. सर मध्य प्रदेश और राजस्थान के कुछ बलाई जाति के लोगो ने आचार्य श्री नानेश जी महाराज द्वारा जैन धर्म अपनाया था और वे अब धर्मपाल जैन के नाम से जाने जाते है ये समाज साधु मार्गी शाखा से जुड़ा हुआ है और धर्मपाल जैन का प्रमुख कार्यालय बीकानेर राजस्थान में है। और इनका एक बहुत बड़ा संघ भी है।

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  2. बहुत ही रोचक जानकारी के लिए आपका खुब खुब आभार

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  3. जय जिनेंन्द्र!महत्वपूर्ण जानकारी के लिए बहोत बहोत धन्यवाद |

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  4. जयजिनेंद्द
    आपने बहोतही आवश्यक और महत्त्व पुर्ण जानकारी बतायी। आपके अभ्यास और लगन को नमन।

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  5. बहुत बढ़िया जानकारी के लिए धन्यवाद ,,हमें नही पता था की जैन धर्म का विस्तार इतना है ,,ये जरूर पढ़ा था की प्राचीन काल मे जैन ही हुआ करते थे बस ,,

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  6. जय जिनेन्द्र। यह बहुत महत्वपूर्ण जानकारी है। इसका ख़ूब प्रचार प्रसार होना चाहिये। इस जानकारी को संकलित करने के

    आपके प्रयास की बहुत सराहना एवं धन्यवाद ।

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  7. Very important information about jain community. We have got major role in Indian
    Culture. ... suresh
    Patil jaysing pur





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  8. जैन तत्व अनेकांतवाद सिखता हैं,जिओ और जीने दो सिखाता हैं... जो जो apne apne ढंग से साधना मे लीन हैं... साधना साधुसेवा संयम तप इन्को प्रायः महत्त्व देते हैंl श्रमण और श्रावक का ए अनोखा मेल हैं l इसलीये जातीयवादी तथा कानुनी व्यवहारी संगठन मे विशेष ध्यान नाही दिया गया और छोटे छोटे समूह मे एक दुसरे से पृथक्क रह गया l अधिकतम सरकारी yojanaonse और संगठन से उदासीन ही राहता हैं...

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