महावीर सांगलीकर
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दलित समाज भारत भर में फैला हुआ है. इनमें से ज्यादातर लोग हिन्दू धर्म का पालन करते है. लेकिन लाखों दलितों ने इस्लाम या ईसाई धर्म का स्वीकार किया है और यह सिलसिला जारी है. .
दूसरी ओर पिछले कुछ दशकों से दलित समाज में बौद्ध धर्म का प्रचार जोर-शोर से किया जा रहा है.
धर्म एक व्यक्तिगत चीज है. किसको किस धर्म का पालन करना चाहिए वह उस व्यक्ति की मर्जी पर निर्भर है. किसी के दबाव में आकर, या फिर आर्थिक या अन्य प्रकार के प्रलोभन के कारण धर्म परिवर्तन करना यह एक निहायत ही गलत बात है. धर्मपरिवर्तन को तभी सही माना जा सकता है जब वह अपनी मर्जी से, उस धर्म में रूचि निर्माण होने के कारण और बिना किसी के दबाव के कारण किया जा रहा हो.
जिसे धर्मपरिवर्तन करना है, उसे पहले यह सोचना चाहिए कि क्या धर्मपरिवर्तन करना जरुरी है? यह भी सोचना चाहिए कि क्या किसी संघटित धर्म का पालन करना जरुरी है? जिनके पास उच्च कोटी की बुद्धिमत्ता है, उन्हें किसी भी संघटित धर्म का अनुयायी होने की जरुरत नहीं है. उन्हें तो आध्यात्मिक (Spiritual) होना चाहिए, न कि धार्मिक. और अगर वह आध्यत्मिकता भी नहीं चाहते तो उन्हें विज्ञानवादी होना चाहिए. (लेकिन इस बात को भी ध्यान में रखें कि अध्यात्म और विज्ञान का गहरा रिश्ता है, और सभी वैज्ञानिक आध्यात्मिक और अंतर्मुख ही होते है).
लेकिन आम आदमी को किसी न किसी धर्म का सहारा लेना एक जरुरी बात है. इसके कई लौकिक और मानिसक फायदे होते हैं.
आप अगर एक आम आदमी है, और आप धर्मपरिवर्तन करना चाहते हैं तो आपको आप जिस धर्म को अपनाना चाहते हैं उसका दर्शन, इतिहास, उस धर्म का पालन करने वाले लोगों के रीतिरिवाज, संस्कृति, रहनसहन, स्वभाव, खानपान, उनकी आर्थिक स्थिति, उनका देश और समाज के विकास में योगदान आदि के बारे में थोड़ा जान लेना चाहिए.
पिछले कुछ दशकों से दलित समाज के विभिन्न जातियों में बौद्ध धर्म का जोर शोर से प्रचार शुरू है. जो लोग धर्मपरिवर्तन करना नहीं चाहते उनपर भी धर्मपरिवर्तन करने के लिए कुछ संगठन दबाव डाल रहें हैं.
बौद्ध धर्म एक महान धर्म है, इसलिए बौद्ध धर्म अपनाना कोई बुरी बात नहीं है. लेकिन बौद्ध धर्म का प्रचार करने वालों के साथ एक बडी समस्या यह है कि यह प्रचार हिन्दू धर्म के प्रति नफ़रत फैलाकर किया जाता है. इस कारण हम देखते है की बौद्ध धर्म अपनाने वाले दलितों में हिंदू धर्म और समाज के प्रति बड़ा गुस्सा होता है और बदले की भावना भी होती है. वास्तव में बौद्ध धर्म का प्रचार एक धार्मिक आंदोलन नहीं है, बल्कि राजनितिक आंदोलन बन गया है.
इस कारण दलितों का एक बड़ा तबका ऐसा भी है जो बौद्ध नहीं बनना चाहता, लेकिन हिन्दू धर्म भी उन्हें रास नहीं आता, क्यों कि उनके साथ भेदभाव किया जाता है, मंदिरों में प्रवेश नहीं दिया जाता.
ऐसी परिस्थिति में मेरा उन दलितों को सुझाव है कि उन्हें जैन धर्म अपनाना चाहिए. जैन धर्म अपनाने से संबंधित समूह में कई परिवर्तन आयेंगे. सबसे बड़ा परिवर्तन यह आएगा कि उनकी जीवन शैली बदल जायेगी. वह समाज एक अहिंसक और व्यसनमुक्त समाज बन जायेगा. उनमें शिक्षा का प्रचार भी बढ़ेगा. उनका सामाजिक दर्जा भी बढेगा, क्यों कि उनकी ‘दलित’ यह प्रतिमा मीट जायेगी, और वह ‘जैन’ के रूप में पहचाने जायेंगे.
यह केवल कल्पना मात्र नहीं है. ऐसा वास्तव में हो चुका है. मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात आदि प्रदेशों में पिछले कुछ दशकों में लाखों दलितों ने जैन धर्म अपनाया है और आज वह लोग एक प्रतिष्ठित और संपन्न जीवन जी रहें हैं. उनका दलित लेबल हट कभी का चूका है और उन्हें वीरवाल जैन और धर्मपाल जैन नाम से जाना जाता है.
इसी प्रकार गुजरात में लाखों आदिवासियों ने जैन धर्म अपनाया हैं.
यह इस बात को ध्यान में रखना जरुरी है के जैन धर्म अपनाने के बाद जो परिवर्तन आयेगा वह एक ही दिन में नहीं आएगा, और ना ही इसके लिए 50-60 साल लगेंगे. व्यक्तिगत परिवर्तन कुछ ही दिनों में आएगा, जब कि पुरे समूह में परिवर्तन आने में कुछ साल लग सकते हैं.
जैन साधू किसी के जैन धर्म अपनाने स्वागत ही करते हैं, चाहे वह किसी भी समूह से हो. लेकिन यह इस बात का ध्यान रखने की जरुरत है की जैन धर्म अपनाने के लिए किसी के परमिशन की जरुरत नहीं है, और ना ही इसके लिए कोई विधि है. आप मानसिक स्तर पर जैन धर्म अपना सकते हैं, जितना हो सके उतना आचरण कर सकते है (जैसे कि पांच अणुव्रतो का पालन, व्यसनमुक्त जीवन, स्वाध्याय आदि).
दलितों ने जैन धर्म अपनाने का एक फायदा यह हो जायेगा कि यह लोग हिंदुओं से वैरभाव नहीं रखेंगे. क्यों कि यह धर्म परिवर्तन समाज निर्माण के लिए और व्यक्तिगत विकास के लिये है, न कि हिंदू धर्म से और हिंदुओ से नफरत पालने के लिये!
एक उल्लेखनीय बात यह है कि जैन धर्म और हिंदू धर्म में कोई संघर्ष नहीं है. जैन धर्म के प्रचार में हिंदू धर्म के लोगों ने बड़ा योगदान दिया हैं. आज पुरे भारत में बीस हजार से ज्यादा जैन साधू है, और उनमें एक बड़ी संख्या उनकी है जो जन्म से हिंदू हैं. कुछ जैन साधू जन्म से दलित और आदिवासी हैं.
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जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपके इस विचार को रखने के लिए।
हटाएंआपकी यह पोस्ट के बाद १९ सितंबर को दीपानसुजी ने टिप्पणी की है इसके अलावा बाकी सब जैन मौन है इस बात स्पष्ट हो रही है।
तो इस लेख पे सबसे पहले मैं ज्यादा से ज्यादा जैनीओ जो भारत में वर्णाश्रम में तीसरे स्थान पे थे जो आज हिंदू बनिया के बदले जैन बनिया की पहचान ले चुके है।
मे चाहता हु की इसमें ज्यादा से ज्यादा जैन अपना विचार रखे।
और
आप के लेख के मुताबी मुझे भी ज्ञात है की गुजरात के सुरेंद्र नगर एवं कच्छ के कुछ दलित वर्ग जैन बनाए गए है उस के पीछे कारण है की गुजराती जैन में लड़किया की संख्या कम है और बहुत सारे जैन परिवारोमे दलित लड़किया की सादी हो रही है लेकिन जैन लड़किया की सादी दलितों से नही हो रही!
शुक्रिया
नरेश
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