सोमवार, 30 अगस्त 2021

तुलुनाडु के चौटा राजवंश का इतिहास

©  महावीर सांगलीकर 

कर्नाटक और केरल के तुलु भाषी क्षेत्र को तुलुनाडु के नाम से जाना जाता है. तुलनाडु कर्नाटक में दक्षिण कॅनरा व उडपी जिले और केरल में कासरगोड जिले क्षेत्र के अंतर्गत आता हैं. चौटा राजवंश मध्यकाल के सबसे महत्वपूर्ण राजवंशों में से एक है. चौटा जैन धर्म के अनुयायी थे. 

चौटा राजवंश ने सं 1160 से 1867 ईस्वी तक यानी 700 सालों तक इस क्षेत्र पर शासन किया. चौटा वंश के सत्ता में आने से पहले इस क्षेत्र पर होयसल वंश के राजा विष्णुवर्धन का शासन था. दरअसल, विष्णुवर्धन के शासन की स्थापना से पहले भी इस क्षेत्र पर चौटाओं के पूर्वजों का शासन था.

विष्णुवर्धन की मृत्यु के बाद तिरुमल राया (प्रथम) ने 1160  ईस्वी में राज्य वापस पा लिया और इस क्षेत्र में चौटाओं की शक्ति फिर से स्थापित हो गई. तिरुमल राया ने उल्लाल के निकट सोमेश्वर गांव से शासन किया. तिरुमल राया जैन धर्म का अनुयायी था. सोमेश्वर इस गांव की ग्रामदेवता सोमनाथ थी. इसलिए तिरुमल राया ने इस ग्रामदेवता का अपने कुलदेवता के रूप में स्वीकार किया. 

उल्लाल में एक महल का निर्माण करते समय तिरुमल राया को एक विशाल गुप्त खजाना मिला उसने इस खजाने का उपयोग अपने राज्य को ठीक-ठाक करने के लिए किया. 

चौताओं की राजधानी उल्लाल के किले के अवशेष 

1179 इसवी में तिरुमल राया (प्रथम) की मृत्यु हो गई. उसका दामाद चेन्नराया (प्रथम) उसका उत्तराधिकारी बन गया. चेन्नराया का दामाद था वरदैय्या. वरदैय्या एक बहुत ही चतुर प्रशासक और एक शक्तिशाली सेनापति था. वह महत्वाकांक्षी भी था. उसने चौटा राज्य का विस्तार करने के लिए विशेष बल जुटाना शुरू किया. उसकी योजना देखकर पड़ोसी बल्लाल राजा ने चौटा राज्य पर आक्रमण कर दिया. इस युद्ध में वरदैया ने राजा बल्लाल को हरा दिया और उसका राज्य चौटा राज्य में मिला दिया. 

इस जीत से वरदैय्या की महत्वाकांक्षा बढ गयी. उसने दो पड़ोसी राज्यों पर आक्रमण किया और उन्हें पराजित किया और उन्हें भी चौटा राज्य में शामिल कर दिया. उसी समय, मिजारा के राजा चेन्नप्पा ने महसूस किया कि  अब उसकी बारी है. उसने चौटा राज्य पर आक्रमण करने का फैसला किया. चेन्नराया को यह खबर मिली और इसके पहले कि चेन्नप्पा आक्रमण करें, चेन्नराया ने मिजारा पर एक बड़ा हमला किया. इसमें चेन्नप्पा की हार हुई. मिजारा राज्य भी अब चौटा राज्य का हिस्सा बन गया. 

इस प्रकार चेन्नराया (प्रथम) के शासनकाल के दौरान उसने और उसके दामाद वरदैया ने चौटा राज्य का विस्तार किया. राज्य के विस्तार के बाद चेन्नराया  ने प्रशासन, राजस्व और रक्षा प्रणाली में कई सुधार किए. उसने चौटा राज्य की रक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए एक विशेष आदेश जारी किया उस आदेश के अनुसार राज्य के हर घर के एक व्यक्ति को युद्ध के दौरान सेना में भर्ती होना अनिवार्य था. 

1219 इसवी में चेन्नराया (प्रथम) की मृत्यु हो गयी. उसकी मृत्यु के बाद उसका दामाद वरदैय्या चौटा राज्य का राजा बन गया. राज्याभिषेक के बाद वह चौटा  देवराया इस नाम से जाना जाने लगा. 

चौटा राजवंश के सात सौ साल के इतिहास में कुल 20 व्यक्तियों ने शासन किया.

चौटा राजवंश में मातृसत्ताक व्यवस्था थी. इस व्यवस्था कुछ अलग प्रकार की थी. इस व्यवस्था में राजा के बाद उसका बेटा राज्य का वारिस नहीं बन जाता था, बल्कि दामाद, बेटी, बहू, भांजी या भांजे को राज्य का वारिस बना दिया जाता था. बहू आमतौर पर भांजी ही होती थी. इस क्षेत्र में भांजी या ममेरी बहन के  साथ विवाह करने की प्रथा थी. 

चौटा राजवंश में 11 राजाओं और 9 रानियों ने राज किया. यह  नौ रानियां या तो उनके पहले के राजा/ रानी की बेटियां थी, बहुएं थी या भांजिया थी.  

इसी चौटा राजवंश में आगे चलकर अबक्का नाम की पराक्रमी रानी हुयी, जिसने पर्तुगालियों को जमिनी  और समुद्री लड़ाईयों में कई बार पराजित किया और उन्हें दक्षिण भारत में राज्य विस्तार करने से रोक दिया. इस रानी के कारण पर्तुगालियों का राज्य गोवा तक ही सिमित रह गया. इस पराक्रमी अबक्का रानी के बारे में मैं एक अलग लेख लिखूंगा. 

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