सोमवार, 1 अगस्त 2022

जैन धर्म का बीसपंथ वैदिक धर्म की नकल मात्र है!

महावीर सांगलीकर 

jainway@gmail.com


इस लेख को अच्छी तरह समझने के लिये आपको पहले जैन धर्म और वैदिक धर्म में क्या अंतर है इसके बारे में जानना होगा. इस विषय की चर्चा मैंने मेरे  जैन धर्म और वैदिक धर्म में क्या अंतर है? इस लेख में विस्तार से की है. 


जैन धर्म के दिगंबर और श्वेतांबर यह दो संप्रदाय है. दिगंबर संप्रदाय के दो प्रमुख उप संप्रदाय है तेरापंथ और बीस पंथ. बीस पंथ पर वैदिक धर्म का गहरा प्रभाव है. इतना गहरा प्रभाव कि हम बीस पंथ को वैदिक धर्म की एक शाखा मान सकते है!

तो आईये हम देखते है कि बीसपंथ और वैदिक धर्म में क्या समानताएं है और बीस पंथ और जैन धर्म में क्या अंतर है.

● जैन धर्म और वैदिक धर्म में सब से बडा अंतर यह है कि जैन धर्म समतावादी है जब कि वैदिक धर्म विषमतावादी. इस संदर्भ में जब हम बीस पंथ के अनुयायीयों की ओर देखते हैं तो पता चलता है कि यह लोग कट्टर विषमतावादी होते है. इनके विषमतावाद के कुछ उदाहरण देखिये: इनके मंदिरों में दूसरे लोगों को प्रवेश नहीं दिया जाता, यह अपने आपको दूसरों से उच्च समझते हैं, अन्य जाति के लोगों को दीक्षा देने का कड़ा विरोध करते हैं, अस्पृश्यता का पालन करते हैं, वर्णव्यवस्था का समर्थन करते हैं और अपने क्षत्रिय होने का दावा भी करते हैं. यह लोग अन्य जाति के लोगो को जैन धर्म में प्रवेश देने का भी विरोध करते हैं.

अब विषमतावादी लोग भला जैन कैसे हो सकते हैं? जिस जैन धर्म में विषमतावाद का कोई स्थान नहीं है, उस धर्म के अनुयायी कहलाने वाले बीसपंथियों में यह विषमतावाद कहां से आया? अर्थात यह वहीं से आया जहां इसका स्रोत है, यानी वैदिक धर्म से !

●  जैन धर्म ने कर्मकांडों का हमेशा विरोध किया है. लेकिन इसके उल्टे बीसपंथ एक कर्मकांडप्रधान धर्म है. इनके कर्मकांड वैदिक धर्म के जैसे ही होते है. जैसे कि होम हवन करना, विवाह के समय अग्नि के फेरे लगाना, मौजीबंधन करना, जनेऊ पहनना आदि. यह सारी बातें वैदिक धर्म की है ना की जैन धर्म की!

●  जैन धर्म के अनुसार अग्नि का कम से कम प्रयोग करना चाहिए, लेकिन बीसपंथ के कर्मकांडों में अग्नि को कुछ जादा ही महत्व दिया गया है. यह वैदिक धर्म के अनुसार ही है, क्यों कि वैदिक धर्म में अग्नि का बड़ा महत्व है और वैदिक कर्मकांडों में अग्नि का प्रचूर मात्रा में प्रयोग किया जाता है.

●  बीसपंथी लोग जब होम हवन आदि करते हैं तब उनके मंत्रों में वायु, अग्नि, इंद्र, वरुण आदि  वैदिक देवताओं के नाम लिए जाते हैं!

● इनकी भट्टारक परंपरा होती है. यह भट्टारक मठों में रहते हैं. यह परंपरा वैदिक धर्म के शंकराचार्य परंपरा जैसी ही है.

तो यह सारी चीजे बीसपंथ में कहां से आयी? इसका उत्तर है 9वी सदी के आचार्य जिनसेन ने, जो वास्तव में एक वैदिक ब्राह्मण थे, दक्षिण भारत के जैन धर्म का वैदिकीकरण किया. आचार्य जिनसेन के कारण ही जैन धर्म का मूल स्वरुप नष्ट हो गया और वह वैदिक धर्म की एक नकल मात्र रह गया.

वास्तव में बीसपंथ का जैन धर्म के मूलभूत सिद्धांतों से कोई मेल ही नहीं हैं.

बीसपंथ का ज्यादा बोलबाला दक्षिण महाराष्ट्र, कर्णाटक और तमिल नाडु आदि प्रदेशों में है. इसमें कोई आश्चर्य की नहीं है कि इन प्रदेशों के बीसपंथी लोग अन्य जैनियों से टूट गए हैं, जैसे वह जैन धर्म के मूल विचारों से टूट गए हैं.

बीसपंथ के पढे लिखे नवयुवकों को इन बातों पर विचार करना चाहिए और बीसपंथ पंथ पर वैदिक धर्म का जो आक्रमण हो गया है उसको हटाने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिये.




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