रविवार, 16 जनवरी 2022

धार्मिक कट्टरतावादियों के लक्षण | हर धर्म खतरे में !

महावीर सांगलीकर

jainway@gmail.com 

 

अगर आप एक धार्मिक व्यक्ती हैं, तो कोई बात नहीं, लेकिन आप अगर कट्टरतावादी हैं तो यह बात आपके लिये और समाज के लिये एक समस्या खडी कर सकती है. किसी भी प्रकार की कट्टरता आपके मानसिक और बौद्धिक विकास में बाधा बन जाती  है. 

हर धर्म के अनुयायियों के कुछ विशेष लक्षण होते हैं, उनकी अलग-अलग मान्यताएं  होती हैं और अलग अलग रीतिरिवाज होते हैं. लेकिन सभी धर्मों में कुछ कट्टरतावादी होते हैं. सभी धर्मों के कट्टरतावादियों  के कुछ समान लक्षण भी होते हैं! इसा लेख मेँ मैं इन समान  लक्षणों के बारे में लिखा रहा हूं.  

● हर धर्म के कट्टरतावादी अनुयायी अपने अपने धर्म को महान  मानते हैं और दूसरे धर्मों  को निचा दिखने की कोशिश करते हैं. 

● हर धर्म के संप्रदाय होते है. हर सम्प्रदाय के अनुयायी होते है. हर संप्रदाय के कट्टरतावादी अनुयायी अपने ही धर्म के दूसरे सम्प्रदायों का द्वेष करते हैं. (जैसे कॅथोलिक-प्रोटेस्टंट, शिया-सुन्नी, शैव-वैष्णव, दिगंबर-श्वेताम्बर, हीनयान-महायान आदि). 

● यह कट्टरतावादी अनुयायी दूसरे धर्मो और संप्रदायों के अनुयायियों के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग करते हैं, जैसे कि........ (आप अच्छी तरह जानते हैं!).

● हर धर्म के कुछ पवित्र ग्रंथ होते है. कट्टरतावादी अनुयायी मानते हैं की इन ग्रंथों में लिखा हुआ हर वाक्य और हर शब्द 'सत्य' है. वह भी उन ग्रंथों को बिना पढ़े!  

● हर धर्म के कट्टरतावादी अनुयायी मानते हैं की उनका धर्म विज्ञान के अनुसार है. भले ही यह अनुयायी विज्ञान क्या है और उनका धर्म क्या है इन दोनों बातों से अपरिचित होते हैं. धार्मिक लोग विज्ञान के सभी फायदे लेते रहते हैं, लेकिन उनकी मानसिकता विज्ञान विरोधी होती है.    

● सभी भारतीय धर्मों के कट्टरतावादी अनुयायी अपने-अपने धर्मों और संप्रदायों को सबसे प्राचीन मानते हैं.  

● किसी भी धर्म के लगभग सभी कट्टरतावादी अनुयायियों को उनके धर्म के बेसिक दर्शन (फिलॉसॉफी) की बिलकुल जानकारी नहीं होती है. रीतिरिवाज, कर्मकांड, आदि को ही वह धर्म मानते हैं.   

● सभी धर्मों के कट्टरतावादी मानते हैं कि उनका धर्म खतरे में है. उन्हें लगता है की दूसरे किसी धर्म के कारण उनका धर्म खतरे में पड गया है. लेकिन वास्तवता तो यह है कि हर धर्म उसी धर्म के कट्टरतावादीयों के कारण खतरे में पड गया है. 

● यह कट्टरतावादी लोग कलहप्रिय होते हैं, उनका सहअस्तित्व, सहजीवन और सहयोग पर विश्वास नहीं  होता है. 

● लगभग सभी अनुयायीयों का धर्म उनके मां-बाप का ही धर्म होता है, ना की अपनी पसंद के अनुसार चुना हुआ धर्म होता है. इस कारण धर्म धर्म न होकर जातियां बन गए हैं! 

● सभी कट्टरतावादी ज्यादातर लोअर मिडल या मिडल-मिडल क्लास से होते हैं, या किसी कट्टरतावादी राजनितिक पार्टी/संगठन से संबधित होते हैं. 

● यह कट्टरतावादी कम IQ वाले, बेकार या किसी व्यक्तिगत या पारिवारिक समस्या से पीडित होते हैं.  

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हमें इस बात को हमेशा याद रखना चाहिए कि मानव का विकास धार्मिक लोगों ने नहीं, बल्कि वैज्ञानिकों, खोजकर्ताओं, दार्शनिकों और व्यवसायीयों ने किया है. 

इसके उलटे मानव को बांटने का काम धार्मिक कट्टरता वादियों ने किया है. धर्म के नाम पर बडे बडे युद्ध, नरसंहार, बलात्कार, अत्याचार, भेदभाव, खून-खराबा आदि हो गए और आज भी यही काम हो रहा है.  

कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि मजहब ही सिखाता है आपस में बैर रखना!


“The dangerous enemies of your species are fundamentalism, intolerance, separatism, extremism, hostility and prejudicial fear, be it religious, atheistic or political.”

― Abhijit Naskar, Autobiography of God: Biopsy of A Cognitive Reality


24: शांति, सुसंवाद, सद्भावना और सहयोग का अंक

अंकशास्त्र और ग्राफोलॉजी के अनुसार मार्गदर्शन


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1 टिप्पणी:

  1. खुपच प्रबोधनात्मक विचार.सर्व धर्मातील पंथियांनी या बाबी प्रत्यक्ष आचरणात आणायला हव्यात

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