शनिवार, 30 जुलाई 2022

जैन समाज ने जैन महापुरुषों के साथ किस प्रकार का व्यवहार किया था?

 -महावीर सांगलीकर 

jainway@gmail.com


यह लेख लिखने का मेरा उद्देश्य यह है की आज के जैनियों को, विशेष कर युवकों को यह पता चले कि जैन समाज के महापुरुष अपने समय से कितने आगे थे और उस समय के दकियानूसी जैनियों ने उनके साथ किस प्रकार का अभद्र व्यवहार किया था.


आजकल कई जैन युवक सोशल मिडिया में जैन महापुरुषों और अन्य प्रसिद्ध जैन व्यक्तियों का गुणगान करने का काम कर रहें हैं. जैसे कि लाला लजपत राय, कर्मवीर भाऊराव पाटील, व्ही. शांताराम, डॉ. विक्रम साराभाई, वा. रा. कोठारी, वालचंद हीराचंद, कल्याणजी आनंदजी, अभिनन्दन वर्धमान आदि.

मजे की बात यह है कि गुणगान का मेसेज तैयार करनेवाले यह जैन युवक इन सब महापुरुषों के नाम के आगे जैन शब्द भी जोड़ देते हैं! जैसे कि लाला लजपत राय (जैन), कर्मवीर भाऊराव पाटील (जैन), व्ही. शांताराम (जैन), डॉ. विक्रम साराभाई (जैन), अभिनन्दन वर्धमान (जैन) आदि. वास्तव में इनमें से कोई भी व्यक्ति अपने नाम के आगे जैन शब्द नहीं लिखते थे और ना ही उनको ऐसा लिखने की जरुरत थी, क्यों कि यह लोग नामधारी जैन नहीं थे, बल्कि आचरण से जैन थे.

यह सारे लोग तो महान थे, जिनसे आज के किसी भी जैन की तुलना नहीं की जा सकती.

यह लेख लिखने का मेरा उद्देश्य यह है की आज के जैनियों को, विशेष कर युवकों को यह पता चले कि यह सारे महापुरुष अपने समय से कितने आगे थे और उस समय के दकियानूसी जैनियों ने उनके साथ किस प्रकार का अभद्र व्यवहार किया था.

●  लाला लजपत राय एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे. वह आधुनिक विचारों के थे. उनके आधुनिक विचारों के कारण जैनियों से उनकी पटती नहीं थी. जैनियों से होनेवाले विवादों के कारण आखिर लाला लजपत राय जी ने जैन धर्म छोड़ दिया और वह आर्यसमाजी बन गये.

● व्ही. शांताराम एक महान फिल्मकार थे. भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के विकास में उनका योगदान सराहणीय है. इन्होनें आंतरजातीय विवाह किया था. आंतरजातीय विवाह के कारण जैन समाज ने इन्हें समाज से बहिष्कृत किया था.

● कर्मवीर भाऊराव पाटील ने बहुजन समाज में शिक्षा का व्यापक प्रचार किया. इनकी उठ-बैठ दलितों के साथ होती थी. इस कारण जैन समाज इनसे द्वेष करता था. जैन समाज के लोगों ने इनका प्रचंड विरोध किया. वास्तव में कर्मवीर भाऊराव पाटील के महान कार्य में जैन समाज का योगदान नहीं के बराबर था. इसके उलटे महाराष्ट्र के मराठा समाज ने उनके कार्य में बड़ी मदद की थी. 

मैंने देखा है की कर्मवीर भाऊराव पाटिल का गुणगान करनेवाले ज्यादातर जैनी कर्मवीर के विचारों की अवहेलना करते रहते हैं.

● वा.रा. कोठारी महाराष्ट्र के एक महान समाज सुधारक थे. वह विधवा विवाह के समर्थक थे. एक जैन अधिवेशन में उन्होंने मंच से विधवा विवाह का समर्थन किया. तब जैनियों ने उनकी धोती उतार दी थी.

अब कुछ लोग कहेंगे कि यह सब पुरानी बातें हो गयी. ठीक है, लेकिन क्या आज के जैनी समय के आगे की सोचते हैं, जैसा कि यह सारे महापुरुष सोचते थे?

मेरा जैन युवकों से प्रश्न है कि क्या उनमें महापुरुष बनने की क्षमता है? क्या उनमें हिम्मत है कि ओछी धार्मिकता, धार्मिक कट्टरता से बाहर आकर कुछ बड़ा कर दिखाएं? अगर आपको महान बनना है तो आपको सबसे पहले दकियानूसी विचारों और लोगों से दूर रहना होगा. याद रहें कि महान बनने के लिए आपको तथाकथित धार्मिकता से दूर रहना होगा. धर्म कर्मकांडो में, मंदिर जाने में, दकियानूसी रीतिरिवाजों के पालन में नहीं होता है.

उठो, महान बनो! समय से आगे की सोचो! जो समय से आगे की सोचते हैं, वहीं महान बनते हैं! याद रहें कि कर्मवीर भाऊराव पाटिल हो या विक्रम साराभाई, या अन्य कोई भी जैन महापुरुष मंदिर, साधू आदि से दूर ही रहते थे. ना ही इनमें तथाकथित धार्मिकता के प्रति लगाव था.




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